विरासत में तो सोने की परख मिली थी, मगर संगत और संस्कारों ने साहित्य और संस्कृति में प्रवीण बना दिया। प्राचीन दिव्यग्रंथों के जर्जर पन्नों पर मिटते अक्षर, शब्द जब अध्ययन में अड़चन बनने लगे तो कोरे पन्नों पर हूबहू 'दमकाने' का जुनून चढ़ गया। लेखन में इतनी सावधानी, सतर्कता कि मात्रा, कोमा, विराम, हलंत में लेशमात्र भी त्रुटि नहीं। लंबे समय तक ये दिव्यग्रंथ यूं ही दमकते रहें, इसके लिए आकर्षक और मजबूत जिल्दसाजी कर इन पन्नों को सहेजा भी है। बात हो रही है